Saturday, December 31, 2011

"राजनिति हर निति में शामिल है"

जिस दिन अन्ना ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहीम छेड़ी थी उस दिन से लेकर आज तक में इतना ज्यादा परिवर्तन क्यों हो गया.........??
क्यों अन्ना अपने अभियान से बार-बार भटकने लगे??पूरी जनता उनके इसी निः स्वर्थ्य आन्दोलन और सोच के  साथ थी फिर वो राजनिति की तरफ क्यों जाने लगे.??
ये अन्ना के आन्दोलन का ही  दम था की सरकार को झुकना पड़ा और संसद में लोकपाल बिल  लाकर  बक़येदा बहस करना पड़ा,लेकिन जब बहस का दिन तय था तो अन्ना ने अनशन और जेल भरो आन्दोलन की बात क्यों की??क्या उन्हें संसद पर भरोसा नहीं था, चलो मान लिया भरोसा न सही लेकिन जनता को भी देखने देते की देखो ये हैं हमारे देश के कर्णधार  और हमने इनको मौका  दिया एक सशक्त  बिल लाने का.......जिसमे ये खरे नहीं उतरे....
अन्ना और उनकी टीम ने राहुल गाँधी पर निशाना साधा ..ये भी अजीब ही था ,मेरे एक मित्र हैं डॉ.कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जिन्हों ने एक बहुत ही अच्छी बात कही थी अपने ब्लॉग(जागरण जंक्सन"मुद्दे की बात" ) में की राहुल गाँधी मतलब क्या है??एक पार्टी के महासचिव, एक सांसद, एक उच्च परिवार के सदस्य, पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे और पोते…इसके अलावा उनकी कौन सी उपलब्धि उनको राहुल गांधी से अलग दूसरे प्रकार का राहुल बनाती है? अन्ना हजारे और उनकी टीम के अलावा देश के लाखों-लाख लोग इस कारण उनके साथ नहीं हैं कि वे किसी दल विशेष को चुनाव में हराने का कार्य करते हैं, किसी नेता विशेष के बयानों पर अपनी तल्ख टिप्पणी देते हैं, संसद को अपने अनशन से झुकाते से दिखते हैं वरन देश का जागरूक वर्ग उनके साथ इसलिए खड़ा हुआ है कि वे एक सार्थक विषय को लेकर चले हैं, उनके द्वारा एक समस्या का निदान खोजे जाने का रास्ता बनता दिखा है। बिलकुल सही कहा है डॉ.साहब आपने अन्ना का अभियान भटक गया है............!!
जब अन्ना की तबियत  ठीक नहीं थी उसके बावजूद उन्हों ने अनशन किया और वो कर न सके लेकिन उनकी टीम तो उस अनशन को जारी रख सकती थी??
जेल भरो आन्दोलन कर सकती थी क्यों नहीं  किया जबकि  पहले से सुनिश्चित किया था ??
जब लोकसभा में बिल पास हो गई तबतक अन्ना टीम इसका विरोध करती रही सरकारी बिल के नाते और वही बिल जब राज्य सभा में लटक  गई  तो अन्ना के सहयोगी ये बोल रहे हैं की अगर  सरकार संशोधन कर लेती तो  ये बिल कुछ हद तक लोकपाल की शुरुआत होती..........लेकिन उन्हें और हम जनता को तो ये सरकारी लोकपाल किसी भी कीमत पर नहीं चाहिए था और इसीलिए उन्हों ने संसद में बहस चलने के बावजूद अनशन और जेल भरो आन्दोलन का दम भरा था  ................??
राज्यों में लोकायुक्त के गठन का प्राविधान न करने की विपक्षी दलों की जो मांग थी उसपर टीम अन्ना ने क्यों कुछ नही बोला ??
क्या वाकई अब टीम अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ न लड़ाई करके सीधे सरकार या यु कहें की कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई में जुटी है??
अब तो अन्ना और उनकी टीम की सोच जिस राह पर जाती नज़र आ रही है उससे येही लगता है की राजनिति हर निति में शामिल है...............!!!