खास तौर से जिनको "शुद्र" की श्रेणी में रखा जाता है, वो अपने- आप को अपमानित समझते हैं और अपने मंचों से तुलसी दास की निंदा भी करते हैं|
वह चौपाई अरण्य कांड में इस तरह है........
"पुजिय विप्र शील गुण हिना ,शुद्र न गुण-गन ज्ञान प्रवीना"
सतो गुण, रजो गुण और तमो गुण,........यह तीनों गुण मिल कर के मनुष्य के शील को नष्ट कर देते हैं.........,
इसीलिए तुलसीदास जी का आशय था कि बिना पढ़ा लिखा “विप्र” अगर इन गुणों से हीन है तो वो स्वयं ही योगी और संत है,और वह "ब्रम्ह जानाति ब्राम्ह्मनाह" की श्रेणी में आ जाता है ,जिसका अर्थ है --- ब्रह्माण्ड को जानने वाला ही ब्राह्मण है|
योगी , साधु तथा निर्गुण मनुष्य (यहाँ निर्गुण से तात्पर्य उन तीनों गुणों से हीन जो उपर्युक्त दर्शाए गए हैं) ब्राहमण की श्रेणी में आता है उसकी जाति विशेष से सम्बन्ध नहीं होता |
दूसरी तरफ एक विद्वान मनुष्य सभी ग्रंथो का अध्ययन करने के बाद भी इन उपरोक्त तीनों गुणों का त्याग नहीं करता तथा उसका शास्त्रिय ज्ञान केवल विद्वता के लिए है ,वह विदेह नहीं है उसका अध्ययन और पांडित्य केवल छिद्रान्वेषण (टिका-टिपण्णी) के लिए ही होता है, वास्तविकता यह है कि उसकी आस्था उस विषय में नहीं होती | वही "शुद्र" है|
इसलिए वह साधु ,योगी की श्रेणी में नहीं आता,अतएव वह पूजनीय नहीं है और इससे यह समझा जा सकता है कि ब्राहमण तथा शुद्र कोई जाति नहीं होती|
रैदास, कबीर, बाल्मीकि अदि पूजनीय हैं जबकि वे जाति निम्न वर्ग के थे| | तुलसी दास की उसी सम्बन्ध में एक और चौपाई है जो उपरोक्त अर्थ को सार्थक करती है ..................
ज्ञान मान जह ऐकौह नाहिं,देख ब्रह्म समान सब माहीं|
कहिये तात सो परम विरागी, र्त्रिन सम सिद्धि तीन गुण त्यागी||
अतः तीनों गुणों को त्यागने वाला ही परम विरागी और पूजनीय है|
तोड़-मरोड़कर अच्छी व्याख्या की है।दामन जो बचाना है
ReplyDeleteSahi kaha bhai aapne
DeleteShi h vykhya... Tulsidas ji ne yhi likha..
DeleteDoctor ka likha hr koy nhi smj skta isme doctr ka dos nhi h..
Class 1 ka student class 12 ki smj rkhe ye jaruri nhi lekin jb class 1 ka student us levl ka ho jayega tb smj aa jayega... Mn mrji aaye jo arth lga kr mahapurusho ko bdnam nhi krna chahiye... Tulsi das ji ek bhakt hai or unhone apne aaraadhy k liye jo likha vo likha... Unhone theka to nhi liya ki sb unki bat se shmt ho... Ya sbko smj hi aaye... Lekin jo jigyasu smje to labh hi hoga... Lekin smj tb aayega... Jb smjne vale ki buddhi us levl pr vichar kare...
Dukh ki bat ye h ki thekedaro ne ramchartmans ko apni smpti smj liya or mrji aaye jo arth lgakr prman dete h ki dekho ramayn me likha h... Sudro ko dur karo.... Yhi pakhand h sirf apna pet bharne k liye... Dharm ko bech dala thekedaro ne... Srm aani chahiye.. Fir khud ko uchchvrn khte h.. Kas jo khud ko mante ho.. Ese ho bhi jate to.. Ye drti jnnt bn jati... Manvta ki itni berhmi se hatya n hoti... Ese tathakthith uchvrno dvara sastro or dharam ki aad me kiye nirmam atyacharo ko jankr ruh kano jati h... Kese ksaiyo k hath mai duniya k sresthtam dharm ki bagdor rahi h...
DeleteSahi byakhya
Deleteबन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद
Deleteयथार्थ व्याख्या है।
ReplyDeleteWahhhhhh, Dhany hai aapki soch ko, aur jo log bina soche samje apna man mana arth nikal ke samaj lete hai, unko khas ye samajna chahiye.
ReplyDeleteYe baykhya thik nahi hai.aaj ka yek varg iska birodh karta hai.
ReplyDeleteकितना बेवकूफ बनाओगे, कितना तोड़ मरोड़ कर व्यख्या किया है लेकिन यह व्यर्थ है क्योंकि रामायण में ऐसी बहुत सी चौपाई है रामायण में राम का बहाना दे कर खुद शूद्रों को गा गा कर गाली दिया और आज भी शूद्र यानी (SC,ST,OBCs) वही रामायण गा गा कर खुद को हो गाली देता है। कभी रामायण में लिखी चौपाईयो का अर्थ नही समझता।।।
ReplyDeleteचलिए आज आपको रामायण में लिखी सत्यता को दिखाते हैं����
�� *मौलिक जानकारी*��
जिस रामायण मे जात के नाम से गाली दिया गया है, उसी रामायण को शूद्र लोग रामधुन (अष्टयाम) मे अखण्ड पाठ करते है, और अपने को गाली देते है । और मस्ती मे झाल बजाकर निम्न दोहा पढते है :-
*जे बरनाधम तेलि कुम्हारा, स्वपच किरात कोल कलवारा*।।
(तेली, कुम्हार, किरात, कोल, कलवार आदि सभी जातियां नीच 'अधम' वरन के होते हैं)
*नारी मुई गृह संपत्ति नासी, मूड़ मुड़ाई होहिं संयासा*
(उ•का• 99ख 03)
(घर की नारी 'पत्नी' मरे तो समझो एक सम्पत्ति का नाश हो गया, फिर दुबारा दूसरी पत्नी ले आना चाहिए, पर अगर पति की मृत्यु हो जाए तो पत्नी को सिर मुंड़वाकर घर में एक कोठरी में रहना चाहिए, रंगीन कपड़े व सिंगार से दूर तथा दूसरी शादी करने की शख्त मनाही होनी चाहिए)
*ते बिप्रन्ह सन आपको पुजावही,उभय लोक निज हाथ नसावही*
(जो लोग ब्रह्मण से सेवा/ काम लेते हैं, वे अपने ही हाथों स्वर्ग लोक का नाश करते हैं)
*अधम जाति मै विद्दा पाए। भयऊँ जथा अहि दूध पिआएँ*
(उ०का० 105 क 03)
(नीच जाति (SC,ST,OBCs) विद्या/ज्ञान प्राप्त करके वैसे ही जहरीले हो जाते हैं जैसे दूध पिलाने के बाद साँप)
*आभीर(अहिर) जमन किरात खस,स्वपचादि अति अधरूप जे*!!
(उ• का• 129 छं•01 )(अथॅ खुद जाने)
*काने खोरे कूबरे कुटिल कुचली जानि*।।
(अ• का• दोहा 14)
(दिव्यांग abnormal का घोर अपमान, जिन्हें भारतीय संविधान ने उन्हें तो एक विशेष इंसान का दर्जा दिया & विशेष हक-अधिकार भी दिये)
*सति हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्वग्य,कीन्ह कपटु मै संभु सन नारी सहज अग्य*
(बा • का• दोहा 57क)
( नारी स्वभाव से ही अज्ञानी)बाकि अथॅ खुद समझे ।
*ढोल गवार शूद्र पशू नारी,सकल ताड़न के अधिकारी* ।।
(ढोल, गंवार और पशुओं की हीे तरह *शूद्र*(SC,ST,OBCs) एव साथ-साथ *नारी* को भी पीटना चाहिए)
( सु•का• दोहा 58/ 03)
*पुजिए बिप्र शील गुण हीना,शूद्र न पुजिए गुण ज्ञान प्रविना*
(ब्रह्मण चाहे शील-गुण वाला नहीं *है फिर भी पूजनीय हैं और शूद्र (SC,ST,OBCs)चाहे कितना भी शीलवान,गुणवान या ज्ञानवान हो मान-सम्मान नहीं देना चाहिए)
इस प्रकार से अनेको जगह जाति एवं वर्ण के नाम रखकर अपशब्द बोला गया है। पुरे रामचरितमानस व रामायण मे जाति के नाम से गाली दिया गया है।
इसी रामायण मे बालकाण्ड के दोहा 62 के श्लोक 04 मे कहा गया है, कि जाति अपमान सबसे बड़ा अपमान है
इतना अपशब्द लिखने के बाद भी हमारा शूद्र/दलित समाज (SC, ST, OBCs) रामायण को सीने से लगा कर रखे हुए हैं
पुजिये विप्र का अध्याय और संख्या बताये ?
Deleteअधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी॥
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥2॥
भावार्थ
जो अधम से भी अधम हैं, स्त्रियाँ उनमें भी अत्यंत अधम हैं, और उनमें भी हे पापनाशन! मैं मंदबुद्धि हूँ। श्री रघुनाथजी ने कहा- हे भामिनि! मेरी बात सुन! मैं तो केवल एक भक्ति ही का संबंध मानता हूँ॥2॥ अरण्यकाण्ड
* जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥
भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥3॥
भावार्थ : जाति, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता- इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है, जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखाई पड़ता है॥3॥अरण्यकाण्ड
उत्तरकाण्ड में जहा कलियुग की चर्चा है वहा तुलसीदास ने जहाँ तेली कुम्हार को खींचा है वहा ब्राह्मणों की भी खिंचाई हुई है |
बिप्र निरच्छर लोलुप कामी।
निराचार सठ बृषली स्वामी।।
तुलसी दास जी यहाँ कलियुग का वर्णन कर रहे हैं न कि जाती प्रथा का |
Shudra tum ho sabko shudra mat kaho. Janmna jaayte shudrah, sanskaarah dwija bhavet.
Deleteये जात पात नही होना चाहिये बात रही रामायण गीता महाभारत की ये तो सच और पवित्र हे इसे हिन्दुओ को मानना चाहिए रामायण लिखने बाले बाल्मीकि जी सूद्र थे वो गलत क्यों लिखेंगे जो मुर्ख जाहिल होगा या गैर हीन्दू होगा वही इसका विरोध करता है आज समय हीन्दू ग्रन्थ ही सत्य है अगर गलत होता तो हीन्दू भी दूसरे धेर्मो की तरह आतंकवादी होता
ReplyDeleteकभी वेद पढ़े है 2 लिंक है खोलके पढ़ लेना
Deletehttps://www.sachkaaina.com/2019/08/terrorism.html?m=1
https://www.sachkaaina.com/2019/11/arya-aur-anarya-ka-yudh.html?m=1
Aise soch rakhne waale wo b SRI RAM CHARITY MANAS ke liye....
ReplyDeleteThuuuu hhh.Marne k bad kabr tak nadib nhi hogi.
Dharm k name pr jitne dohe likhe gye h uper kisi ka b ssahi sahi arth nhi h
Mera to bas yahi manna h k jo sale DHARMIK GRANTH fir wo chahe RAMAYAN ho ya GEETA nhi padhe hote wahi saale sabse jyada panditayi chhatte h
अबे मुर्ख व्यक्ति क्यू आप लोग धर्म को बदनाम करने में लगे हो धर्म का कुछ नहीं बिगाड़ सकता परन्तु tum नही bacho गे मुर्ख कही के
ReplyDeleteडां बी.आर. अम्बेडकर ने अब सबको समान अधिकार दे दिए मनुवादी व्यवस्था से दूर रहो वुद्धमय भारत पर बल दो ।
ReplyDeleteJati to azadi ke bad Gandhi ne hi thop Diya nahi to hinduo ki koi jati nahi hoti
ReplyDelete"पुजिय विप्र शील गुण हिना ,शुद्र न गुण-गन ज्ञान प्रवीना"
ReplyDeleteचौपाई संख्या बताइए अरण्य कांड में कहाँ लिखा हुआ है ?
अरण्य कांड दोहा 33.1
Deleteपहले विप्र का अर्थ समझ लो
ReplyDeleteवेेेदा ध्यायी सो विप्र
जो वेद का अध्ययन करता हो तियसंध्या करता हो
दुकान चलाने वाला यदि विप्र कुल मे जन्म लिया है
तो वह बनिया हुआ न कि विप्र
आप जो जाति कहते हो वह एक पद है
जैसे डाक्टर वकील प्रधानमंत्री
धर्मग्रंथ का उपहास करना छोड़ो
ग्रंथ का अध्ययन करो
मो0 9565100740
Aap sch me esa mante ho kya...
DeleteKya aap jati vyvstha nhi mante ho..
अज्ञानी लोग ही अर्थ का अनर्थ बताकर समाज को तोडने का किया है अनेकता में एकता भारत की विशेषता कई लोगों को नहीं पच रही है वो सब झुठे प्रचार झुठे प्रमाण दिखाकर भारत की एकता और अखंडता को खत्म करना चाहते हैं ।
ReplyDeleteजाति दो है अमीर और गरीब वो कभी खत्म नहीं होगी
हमेशा गरीबों का शोषण होता रहा है ।
क्यों टेढ़ा मेढ़ा घुमा रहे हैं
ReplyDelete।।पूजिहि विप्र(अर्थात ब्राह्मण पूज्य है)किन्हें???? सील गुण हीना(अर्थात)जो सील और अच्छे गुणों से रहित हैं।।।।सूद्र न*अर्थात सूद्र पूज्य नही है किन्हें गुन ज्ञान प्रवीना(जो गुण और ज्ञान में preveen हैं।।।।।।।।
अर्थ इस प्रकार निकलेगा जो सभी गुणों से रहित हैं उनके लिए ब्राह्मण पूज्य है इसके विपरीत सभी गुणों से प्रवीण अर्थात ब्राह्मण के लिए सूद्र पूज्य नही है।।।।।।।
"पुजिय विप्र शील गुण हिना ,शुद्र न गुण-गन ज्ञान प्रवीना"
ReplyDeleteचौपाई संख्या बताइए अरण्य कांड में कहाँ लिखा हुआ है ?